आभासी गहराई

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Apparent depth

जल/वायु अंतरापृष्ठ (इंटरफ़ेस) पर अपवर्तन और प्रकाशकीय (ऑप्टिकल) घनत्व के अंतर "मुड़ी हुई पेंसिल" का भ्रम,आभासी गहराई का उदाहरण है

आभासी गहराई भौतिकी में एक अवधारणा है जो इस बात से संबंधित है कि जल जैसे पारदर्शी माध्यम से देखने पर कोई वस्तु एक अलग स्थिति में कैसे स्थित दिखाई देती है। यह एक ऐसी घटना है जो एक माध्यम (जैसे वायु ) से दूसरे माध्यम (जैसे पानी) में जाते समय प्रकाश किरणों के मुड़ने के कारण घटित होती है।

अपवर्तन और स्नेल का नियम

जब प्रकाश एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाता है, तो अपवर्तन नामक घटना के कारण उसकी दिशा बदल जाती है। स्नेल का नियम आपतन और अपवर्तन के कोणों और दो माध्यमों के अपवर्तन सूचकांकों के बीच संबंध का वर्णन करता है। इसे इस प्रकार लिखा जा सकता है:

जहाँ

   और क्रमशः प्रारंभिक माध्यम (जैसे, वायु) और दूसरे माध्यम (जैसे, पानी) के अपवर्तन के सूचकांक हैं।

  आपतन कोण है (आपतित प्रकाश किरण और सतह के अभिलंब के बीच का कोण)।

   अपवर्तन का कोण है (अपवर्तित प्रकाश किरण और सतह के अभिलंब के बीच का कोण)।

आभासी गहराई

ये दो चित्र लेंस द्वारक (एपर्चर) से किसी वस्तु के छवि निर्माण को दर्शाता है। सही रूप से, यह चित्र वास्तविक वस्तुओं की छवि निर्माण का आदर्श प्रतिरूपण करने में ,किसी ऐसे दृश्य का प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें कई प्रकार की भिन्न भिन्न माध्यमों में मग्न क्षेत्र ((जैसे जलमग्न अथवा किसी असाधारण अपवर्तनांक धारण कीया हुआ वायु क्षेत्र) में उपस्थित वस्तुओं की छवि निर्माण में आए धुंधलेपन की व्याख्या,उस दृश निर्माण के जयमतीय प्रकाशकी विवरण से मिल रही है। इन दो चित्रों में लेंस के द्वारक आकार में आए बदलाव से दृश्य में उपस्थतित वस्तुओं की छवियों के स्वरूप में आए,बदलाव को अधिक सपष्ट कीया गया है। यहाँ, यह भी दिखलाया गया है की किसी छवि का धुंधलापन वास्तव में उस दृश्य निर्माण में उपस्थित हो रही आभासी व वास्तविक गहराई के बदलाव से प्रदर्शित होता है। एक प्रकार से आभासी गहराई किसी भौतिक प्रकाशमय अवस्था का क्षेत्र ज्ञान ही है।आंग्ल भाषा में इस असाधारण घटनाक्रम को डेप्थ ऑफ फील्ड {डी ओ फ } अथवा डेप्थ ऑफ फील्ड DOF कहा जाता है। चित्र में 1,2,3 ,वे बिन्दु वृत हैं जिनका उपयोग किसी दृश्य पटल(5) पर बन रही छवि में आए आकार परिवर्तन (धुंधलेपन) को,आभासी गहराई प्रभाव से संदर्भित करने के लीए प्रयुक्त कीया जा रहा है। यहाँ धुंधलापन, एक सापेक्ष पद है क्योंकी फोकस बिंदु (2) व छवि तल (5) पर,स्थित किसी वस्तु का वास्तविक बिन्दु वृत (2) उसकी छवि के बिन्दु वृत के आकार की सबसे सही (धुंधलापन रहित) प्रतिलिपिक छवि है।अन्य स्थानों पर स्थित वस्तुओं की छवियों में अधिक या कम मात्रा का धुंधलापन विद्यमान रहता है,जो उस दृश्य के बारे में यह इंगित करता है की यदि उस दृश्य में उपस्थित वस्तु की छवि, दृश्य निर्माण की अवधि में किसी भिन्न अपवर्तनांक वाले क्षेत्र से गुज़र चुकी है (जिस घटनाक्रम को प्रतिरूपआत्मक रूप से लेंस व दृश्य पटल के चित्रण से ऊपर दिखलाया गया है ) तो उसकी छविपटल पर बन रही छवि का धुंधलापन रहित आकार तब ही प्राप्त होगा, जब उस वस्तु को लेंस के द्वारक के आकार की उपेक्षा करते हुए, लेंस से गुजरने वाली मध्य रेखा के ऊपर स्थापित कीया गया हो। यदि दृश्य निर्माण में उपयोग में आई वस्तु मध्य रेखा से अलग-अलग दूरी (जिनको चित्र में 1 और 3 पर स्थित बिन्दु वृतों द्वारा इंगित कीया गया है ) पर स्थित हैं, तो उन वस्तुओं की (चित्र में बिंदु स्वरूप ) धुंधली छवियाँ का मूल्याँकन ,छवि निर्माण में आई आभासीय गहराई व वास्तविक गहराई के मूल्य परिवर्तन से संदर्भित एवं प्रदर्शित होता है। इस क्रम में बिन्दु वृत्तों को दृश पटल (5) पर प्रकल्पित (प्रोजेक्ट) कर यह सिद्ध कीया जा रहा है की वास्तविक छवि निर्माण में किसी वस्तु की छवि लेंसनुमा बदलते हुए अपवर्तनांक क्षेत्रों से गुजरती है और उस छवि का आकार परिवर्तन इस बात पर ही निर्भर करता है की उन क्षेत्रों का अपवर्तन गुणांक कैसे बदल रहा है। लेंस के द्वारक के वृत आकार (4) को कम करने से उन तीन बिंदुओं,जिनकी छवि पहेले ली जा चुकी है की, 5 नंबर पर स्थित समतल पर प्रकल्पित वृताकार छवि का वृत आकार में कम अथवा अधिक हो जाता है और दृश पटल को सामने से देखने पर धुंधलेपन से ग्रसित रहता है। ऐसा इस लीये क्यों की ये छवियाँ पूर्ण रूप से उस फ़ोकस किए गए समतल पर न बनकर उसके सामने अथवा पीछे बन रही होती हैं, जैसे जैसे ये वस्तुएं (एवं उनके छवि रूप ) मध्य रेखा के समीप आने लगते हैं, वैसे वैसे उस छवि को आकार दे रही वृत सीमा का धुंधलापन अदृश्य होने और छवि पूर्ण रूप से फोकस में रहती है। दोनों ही परिदृश्यों में इस पूरे घटना क्रम (जहाँ लेंस के द्वारक के आकर अलग अलग हैं ) की अनुकूलता बिन्दु रूप वस्तु की स्थिति डीओएफ के अंदर ही रहने में होती है।

जब किसी पारदर्शी माध्यम, जैसे पानी, में डूबी हुई किसी वस्तु को देखा जाता है, तो वस्तु से निकलने वाली प्रकाश किरणें जल से वायु में जाने पर अपवर्तन से गुजरती हैं। प्रकाश का यह झुकाव यह भ्रम उत्पन्न करता है कि वस्तु वास्तव में जितनी गहराई पर है उससे भिन्न गहराई पर स्थित है। इस अनुमानित गहराई को आभासी गहराई के रूप में जाना जाता है।

आभासी गहराई के लिए समीकरण

आभासी गहराई का समीकरण अपवर्तन और स्नेल के नियम की अवधारणाओं का उपयोग करके प्राप्त किया जा सकता है। यह मानते हुए कि कोई वस्तु जल में डूबी हुई है और जल की सतह के ऊपर से देखी गई है, आभासी गहराई के लिए समीकरण इस प्रकार दिया गया है:

जहाँ:

   जल की सतह के नीचे वस्तु की वास्तविक गहराई है।

  वायु का अपवर्तनांक (लगभग ) है।

   जल का अपवर्तनांक (लगभग ) है।

व्याख्या

जब आभासी गहराई ,वास्तविक गहराई से अधिक होती है, तो वस्तु जल में वास्तव में जितनी गहराई पर स्थित होती है उससे अधिक ऊपर पर दिखाई देती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जल में प्रवेश करते समय प्रकाश किरणें अभिलम्ब की ओर झुकती हैं, जिससे किरणें अधिक शीघ्रता से एकत्रित होती हैं, जिससे कम गहराई का भ्रम उत्पन्न होता है।

इसके विपरीत, जब आभासी गहराई वास्तविक गहराई () से कम होती है, तो वस्तु जल में उसकी वास्तविक गहराई से अधिक गहरी प्रतीत होती है। यहां, जल छोड़ते समय प्रकाश किरणें सामान्य से दूर झुक जाती हैं, जिससे किरणें अधिक धीरे-धीरे विसरित होती हैं, जिससे वस्तु अधिक गहरी लगती है।

याद रखने योग्य

ये समीकरण आभासी गहराई की अवधारणा का सरलीकृत स्पष्टीकरण प्रदान करते हैं। वास्तविक जगत के परिदृश्यों में प्रकाश और सामग्रियों के बीच अधिक जटिल व्यवहार संमलित हो सकती है।