उपसहसंयोजन यौगिकों का सिद्धांत

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वी. एस. ई. पी. आर. सिद्धांत सरल अणुओं की आकृति के बारे में जानकारी कराता है, परन्तु यह उनकी व्याख्या नहीं करता। अतः इन कमियों को दूर करने के लिए दो महत्वपूर्ण सिद्धांत का प्रतिपादन किया गया है, जो क्वांटम यांत्रिकी सिद्धांत पर आधारित है। ये सिद्धांत निम्न- लिखित हैं:

  • संयोजकता आबंध सिद्धांत
  • क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धांत

संयोजकता आबंध सिद्धांत

यह सिद्धांत सर्वप्रथम हाइटलर और लंडन ने सन 1927 में प्रस्तुत किया था, जिसका विकास पॉलिंग तथा अन्य वैज्ञानिकों ने बाद में किया था। एक अणु में इलेक्ट्रॉन आणविक कक्षाओं के अतिरिक्त परमाणु कक्षाओं पर स्थान ग्रहण  कर लेते हैं। परमाणु कक्षकों के अतिव्यापन के परिणामस्वरूप एक रासायनिक बंध का निर्माण होता है और अतिव्यापन के कारण इलेक्ट्रॉन आबंध क्षेत्र में स्थानीयकृत हो जाते हैं।

यह सिद्धांत परमाणु कक्षकों के अतिव्यापन और संकरण तथा अध्यारोपण के सिद्धांतों के ज्ञान पर आधारित था। आइये संयोजकता आबंध सिद्धांत को हाइड्रोजन परमाणु द्वारा समझते हैं:

मान लीजिये कि हाइड्रोजन के दो परमाणु A व B है और इनके नाभिक क्रमशः NA व NB हैं, तथा उनमे उपस्थित इलेक्ट्रॉनों को e द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। जब ये दो परमाणु एक दूसरे से अत्यधिक दूरी पर होते हैं तब उनके बीच कोई अन्योन्य क्रिया नहीं होती। जैसे जैसे ये परमाणु पास पास आते जाते हैं वैसे वैसे उनमे आकर्षण एवं प्रतिकर्षण बल उत्पन्न होता जाता है।

आकर्षण बल निम्न प्रकार उत्पन्न होते हैं:

  • एक परमाणु के नाभिक तथा उसके इलेक्ट्रानों के बीच NA - eA , NB - eB
  • एक परमाणु के नाभिक तथा दूसरे परमाणु के इलेक्ट्रॉनों के बीच NA - eB , NB - eA

प्रतिकर्षण बल निम्न प्रकार उत्पन्न होते हैं:

  • दो परमाणुओं के इलेक्ट्रॉनों के बीच eA - eB तथा
  • दो परमाणुओं के नाभिकों के बीच NA - NB।

आकर्षण बल दोनों परमाणुओं को एक दूसरे के पास लाते हैं, जबकि प्रतिकर्षण बल उन्हें दूर करने का प्रयास करते हैं।

आकर्षण बलों का मान प्रतिकर्षण बलों से अधिक होता है, जिससे दोनों परमाणु एक - दूसरे के पास आते हैं और उनकी स्थितिज ऊर्जा भी कम होती जाती है अतः कुल आकर्षण बल प्रतिकर्षण बल के बराबर हो जाता है और निकाय की ऊर्जा न्यूनस्तर तक पहुंच जाती है। हाइड्रोजन के परमाणु आपस में आबन्धित होते हैं और एक स्थाई अणु बनाते हैं, जिसकी आबंध लम्बाई 74 पीकोमीटर होती है। हाइड्रोजन अणु दो पृथक परमाणुओं की अपेक्षा अधिक स्थाई होता है इस प्रकार मुक्त ऊर्जा आबंध एन्थैल्पी कहलाती है।

संयोजकता आबंध सिद्धांत के अभिधारणाएँ

  • सहसंयोजक बंध तब बनते हैं जब दो अलग-अलग परमाणुओं से संबंधित दो वैलेंस ऑर्बिटल (आधे भरे हुए) एक दूसरे पर अतिव्यापित होते हैं। इस अतिव्यापन के परिणामस्वरूप दो बंध परमाणुओं के बीच के क्षेत्र में इलेक्ट्रॉन घनत्व बढ़ जाता है, जिससे परिणामी अणु की स्थिरता बढ़ जाती है।
  • एक परमाणु के संयोजकता कोश में कई अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति इसे अन्य परमाणुओं के साथ कई बंध बनाने में सक्षम बनाती है।
  • सहसंयोजक रासायनिक बंधन दिशात्मक होते हैं और अतिव्यापी परमाणु कक्षाओं के अनुरूप क्षेत्र के समानांतर भी होते हैं।

क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धांत

क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धांत एक स्थिर वैधुत मॉडल है जिसके अनुसार धातु लिगेंड आबंध आयनिक होते हैं यह धातु आयन और लिगेंड के मध्य स्थिरवैधुत अन्योन्य क्रिया द्वारा उत्पन्न होते हैं। रनावेशित लिगंड को एक बिंदु आवेश के रूप में और उदासीन लिगेंडो को बिंदु द्विध्रुवों के रूप में माना जाता है। किसी भी विलगित गैसीय धातु परमाणु के पांचों D कक्षकों की ऊर्जा का मान बराबर होता है अर्थात इनकी अवस्था अपभ्रष्ट होती है। एच० बैथे1929 तथा वी०व्लैक द्वारा 1932 ई० में उपसहसंयोजक यौगिकों के गुणों को स्पष्ट करने हेतु एक सिद्धान्त प्रस्तुत किया गया था जिसे क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धान्त CFT कहा था। इस सिद्धान्त के मुख्य विन्दु निम्नलिखित हैं:

  • संक्रमण धातु संकुल के केन्द्रीय आयन का कार्य करती हैं। इसमें उपस्थित लिगेंड एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म प्रदान करता है जबकि संक्रमण धातु आयन के रिक्त कक्षक इन इलेक्ट्रॉन युग्म को ग्रहण करते हैं।
  • लिगेण्ड ऋणात्मक आवेिशत होते हैं।
  • संकुल यौगिकों में धातु आयन व लिगेण्ड के मध्य बनने वाले आबन्ध को पूर्णतया आयनिक माना जाता है अर्थात धातु आयन व लिगेण्ड परस्पर स्थित विद्युत आकर्षण बल द्वारा जुड़े रहते हैं।
  • यह स्थिर विद्युत आकर्षण बल धनायन व ऋणायन के मध्य आयन-आयन आकर्षण बल हो सकता है या धनायन व उदासीन लिगेण्ड के मध्य आयन-द्विध्रुव आकर्षण बल हो सकता है।

अष्टफलकीय संकुल यौगिकों में विपाटन

अष्टफलकीय संकुल यौगिकों में 4-कक्षकों को विपाटन एक मुक्त धातु आयन में सभी पाँच कक्षक t2g और eg अपभ्रंश होते हैं अर्थात् उनकी ऊर्जा समान होती है। एक अष्टफलकीय संकर [ML6]n+ पर विचार करें जिसमें धातु आयन Mn+ अष्ट्रफलक के केन्द्र पर है तथा कोनों पर एकदन्ती लिगेण्ड L द्वारा घिरा हुआ है। जब x y और z अक्ष पर समस्त छ: लिगेण्ड धातु आयन की ओर अग्रसर होते हैं तब लिगेण्ड के ऋण भाग इलेक्ट्रॉन द्वारा d-कक्षकों में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों से प्रतिकर्षित होते हैं। इस प्रतिकर्षण द्वारा पाँचों d-कक्षकों की ऊर्जाओं में परिवर्तन होता है। चूंकि eg कक्षकों dx2– y2 और dz2 की पालियाँ केन्द्रीय धातु आयन के समीप जाने वाले लिगेण्ड के मार्ग में आती हैं अत: t2g कक्षकों dxy dyz dzx की अपेक्षा इनमें इलेक्ट्रॉनों का प्रतिकर्षण अधिक होता है। इस कारण पाँच d-कक्षक दो ऊर्जा समूहों में विभक्त हो जाते हैं अर्थात् eg कक्षकों की ऊर्जा में वृद्धि होती है। धातु आयन के पाँच d-कक्षकों का भिन्न ऊर्जा के दो समूहों में विभाजन d – d विपाटन या क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन कहलाता है। t2g और eg कक्षकों की ऊर्जा के मध्य के अन्तर को Δo द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। Δ = ऊर्जा में अन्तर व 0 = अष्टफलकीय इसे 10Dq द्वारा भी दर्शाया जाता है और यह क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा कहलाती है।

चतुष्फलकीय संकुल यौगिकों में विपाटन

चतुष्फलकीय संकुलों में d- कक्षकों का विपाटन समझने के लिए कल्पना कीजिए कि एक घन में चतुष्फलक रखा हुआ है। चतुष्फलक के चार किनारे घन के एकान्तर कोनों पर स्थापित हैं जिन पर चार लिगेण्ड स्थित हैं तथा धातु आयन उसके केन्द्र पर है।अब हम यदि केन्द्रीय धातु परमाणु के d-कक्षकों की तुलना में चार लिगेण्डों की स्थिति को अध्ययन करें तो अक्ष dx2– y2 और dz2 अर्थात् eg कक्षक पर t2g कक्षकों dxy dxz dyz की अपेक्षा चार लिगेण्ड और अधिक दर हो जाते हैं। अतः eg कक्षक निम्न ऊर्जा के हैं और t2g कक्षक उच्च ऊर्जा के हैं। eg और t2g कक्षकों के मध्य ऊर्जा का अन्तर चतुष्फलकीय संकुलों के लिए क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा कहलाता है तथा इसको Δt द्वारा दर्शाया जाता है।

अभ्यास प्रश्न

  • संयोजकता आबंध सिद्धांत से क्या तात्पर्य है?
  • संयोजकता आबंध सिद्धांत के अभिधारणाएँ क्या हैं ?
  • संयोजकता आबंध सिद्धांत, अणु कक्षक सिद्धांत से किस प्रकार भिन्न है ?
  • क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धांत से आप क्या समझते हैं ?
  • अष्टफलकीय संकुल यौगिकों में विपाटन को समझाइये।
  • चतुष्फलकीय संकुल यौगिकों में विपाटन को समझाइये।