गुरुत्वीय तरंग
Gravitational Waves
गुरुत्वीय तरंगें, गुरुत्वीय की तीव्रता की तरंगें हैं,जो द्विआधारी तारों के त्वरित द्रव्यमान और गुरुत्वीय द्रव्यमान की अन्य गतियों से उत्पन्न होती हैं, और प्रकाश की गति से अपने स्रोत से बाहर की ओर, (तरंगों के रूप में) फैलती हैं। इन्हें सबसे पहले 1893 में ओलिवर हीविसाइड द्वारा व इसके उपरांत,1905 में हेनरी पोंकारे द्वारा विद्युत चुम्बकीय तरंगों के गुरुत्वीय समकक्ष के रूप में प्रस्तावित किया गया था। गुरुत्वीय तरंगों को कभी-कभी गुरुत्व तरंगें भी कहा जाता है। प्रायः गुरुत्वीय तरंगें ,तरल पदार्थों में विस्थापन तरंगों को संदर्भित करती हैं।
सैद्धांतिक निरूपण
1916 में अल्बर्ट आइंस्टीन ने सैद्धांतिक रूप से सिद्ध कीया कि गुरुत्वीय तरंगें, उनके सापेक्षता के सामान्य सिद्धांत के कारण समष्टि ( जिसे समष्टि काल,अंतरिक्ष-समय,जगत काल के रूप में भी जाना जाता है) में तरंगों के रूप में उत्पन्न होती हैं। भौतिकी में, गुरुत्वीय तरंगें (न की गुरुत्व तरंगें) समष्टि काल (स्पेस-टाइम अथवा अंतरिक्ष-समय) के मूल तंत्र (ताने-बाने) में समाहित हैं। ये तरंगें अनित्य (बदलते हुए )द्रव्यमान वितरण के साथ मूल स्रोतों से बाहर की ओर प्रसारित होती हैं। इनके अन्वेशण की कहानी आइंस्टीन के सामान्य सापेक्षता के सिद्धांत की एक मौलिक भविष्यवाणी से हुई।
गुरुत्वीय तरंगें, गुरुत्वाकर्षण विकिरण के रूप में ऊर्जा का परिवहन करती हैं, जो विद्युत चुम्बकीय विकिरण के समान, विकर्णित ऊर्जा का एक रूप है। न्यूटन का सार्वभौमिक गुरुत्वाकर्षण का नियम, शास्त्रीय यांत्रिकी का अंग हैं । यह नियम,इस धारणा पर आधारित है कि भौतिक अंतःक्रियाएं तुरंत (अनंत गति से) फैलती हैं और उनके अस्तित्व के लिए न्यूटोनवादी सिद्धांत उत्तरदायी हैं ।
इस प्रकार की सोच से विलग,गुरुत्वीय तरंगो का अस्तित्व का कारण, न्यूटोनवादी भौतिकी की वह नियमावली हैं, जो न्यूटोनवादी भौतिकी की पद्धति मानते हुए, आगे के अध्ययन में असमर्थ हैं क्योंकी इसमे सापेक्षता से जुड़ी घटनाओं की व्याख्या निहित नहीं है ।
परिचय
आइंस्टीन के सापेक्षता के सामान्य सिद्धांत में, गुरुत्वाकर्षण को अंतरिक्ष-समय की वक्रता से उत्पन्न एक घटना के रूप में माना जाता है। यह वक्रता द्रव्यमान की उपस्थिति के कारण होती है। प्रायः, अंतरिक्ष के किसी दिए गए आयतन में जितना अधिक द्रव्यमान होता है, समष्टि काल (जगत-काल ) की वक्रता उसके आयतन की सीमा पर उतनी ही अधिक होगी। जैसे-जैसे द्रव्यमान वाली वस्तुएं, समष्टि काल में समाहित होने को अग्रसर होती है, वक्रता उन वस्तुओं के बदले हुए स्थान को प्रतिबिंबित करने के लिए बदल जाती है।
कुछ परिस्थितियों में, त्वरित होने योग्य वस्तुएँ,इस वक्रता में परिवर्तन उत्पन्न करती हैं, जो तरंग की तरह प्रकाश की गति से बाहर की ओर हैं। इन फैलने वाली घटनाओं को गुरुत्वीय तरंगों के रूप में जाना जाता है।
परिवेक्षकीय उदाहरण
जैसे ही एक गुरुत्वाकर्षण तरंग एक पर्यवेक्षक से गुजरती है, वह पर्यवेक्षक तनाव के प्रभाव से विकृत अंतरिक्ष-समय को पाएगा। जैसे-जैसे तरंग गुजरती है, तरंग की आवृत्ति के बराबर आवृत्ति पर वस्तुओं के बीच की दूरियां लयबद्ध रूप से बढ़ती और घटती हैं। इस प्रभाव का परिमाण स्रोत से दूरी के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
अनुमान लगाया गया है कि प्रेरक (बाइनरी) न्यूट्रॉन युग्मक तारे, जब एक दूसरे के समीप परिक्रमा करते हैं, तो उनके द्रव्यमान में बहुत अधिक त्वरण होने के कारण, वे एकत्रित होकर गुरुत्वाकर्षण तरंगों का एक शक्तिशाली स्रोत बन जाते हैं। हालाँकि, इन स्रोतों की खगोलीय दूरी के कारण, पृथ्वी पर मापे जाने पर प्रभाव बहुत छोटा ( में भाग से भी कम) होने का अनुमान लगाया जाता है।
जहां सामान्य सापेक्षता स्वीकार्य है , वहां पाई गई, गुरुत्वीय तरंगों को समष्टि (स्पेसटाइम) में तरंगों के लिए उत्तरदायी माना जा सकता है; अन्यथा गुरुत्वीय तरंगों को केवल युग्मक प्रणाली (बाइनरी सिस्टम) की कक्षा के उत्पाद के रूप में परिकल्पित कीया जा सकता है। (एक युग्मक कक्षा (बाइनरी) , युग्मक प्रणाली (बाइनरी सिस्टम) को ज्यामिति की गणना अनुसार 180 डिग्री तक बदलने का कारण बनती है,जिससे गुरुत्वाकर्षण तरंग आवृत्ति,कक्षीय आवृत्ति से दो गुना अधिक तक हो सकती है)।