जिमनोस्पर्म

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हम सभी जानते हैं कि जीवित तंत्र को व्यापक रूप से वर्गीकृत किया गया है। व्हिटेकर (1969) द्वारा प्रस्तावित जीव प्रणाली में, उन्होंने पांच जगत वर्गीकरण का सुझाव दिया था। ये पांच जगत निम्नलिखित हैं- मोनेरा जगत, प्रोटिस्टा जगत, कवक जगत, वनस्पति जगत और जंतु जगत। आइये वनस्पति जगत में वर्गीकृत जिमनोस्पर्म जिसे लोकप्रिय रूप से अनावृतबीजी पौधे भी कहा जाता है जाता है पर विस्तार से विचार करते है।

परिचय

अनावृतबीजी पौधे, बीज पैदा करने वाले पौधों का एक समूह है जिसमें पुष्प आदि का निर्माण अनुपस्थित होता है। अनावृतबीजी पौधे या जिम्नोस्पर्म शब्द ग्रीक के मिश्रित शब्द से आया है: जिसमें, जिम्नोस का अर्थ 'नग्न' और स्पर्मा का अर्थ 'बीज' होता है, जिसका शाब्दिक अर्थ है 'नग्न बीज'। यह नाम उनके बीजों की खुली स्थिति/गैर-आच्छादित स्थिति जिन्हे अनिषेचित अवस्था में बीजांड कहा जाता है पर आधारित है।

अनावृतबीजी पौधे, आवृतबीजी पौधे से इस प्रकार भिन्न है- आवृतबीजी पौधे के बीज और बीजांड एक अंडाशय के भीतर घिरे होते हैं। परन्तु अनावृतबीजी पौधे में यह स्थिति नहीं देखी जाती है।

अनावृतबीजी पौधे में बीजांड किसी भी अंडाशय की परत से नहीं घिरे होते हैं और निषेचन से पहले और बाद में खुले रहते हैं। यह बीज जो निषेचन के बाद विकसित होने पर ढके हुए नहीं होते हैं अर्थात नग्न होते हैं। अनावृतबीजी पौधे में मध्यम आकार या ऊँचे पेड़ और झाड़ियाँ होती हैं। अनावृतबीजी पौधे में से एक, विशाल रेडवुड वृक्ष सिकोइया सबसे ऊंचे वृक्ष प्रजातियों में से एक है।

वर्गीकरण

अनावृतबीजी पौधों को नीचे दिए चार प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है -

साइकाडोफाइटा

  • साइकैड्स सामान्यतः उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय में पाए जाते हैं।
  • साइकैड्स बीज देने वाले पौधे हैं जिनके अधिकांश सदस्य अब विलुप्त हो चुके हैं।
  • साइकैड्स एकलिंगी होते हैं (अर्थात, पौधे या तो सभी नर या मादा होते हैं)।
  • इन पौधों में सामान्यतः बड़े यौजिक पत्ते, मोटे तने और छोटे पत्ते होते हैं जो केंद्रीय तने से जुड़े होते हैं।
  • इनकी ऊंचाई कुछ सेंटीमीटर से लेकर कई मीटर तक होती है।

जिन्कगोफाइटा

  • जिंकगोफाइटा की केवल एक ही जीवित प्रजाति है। इस वर्ग के अन्य सभी सदस्य अब विलुप्त हो चुके हैं।
  • जिन्कगो पेड़ों की पहचान उनके बड़े आकार और पंखे जैसी पत्तियों से होती है। जिन्कगो की पत्तियों का सेवन अल्जाइमर जैसे स्मृति संबंधी विकारों के इलाज में किया जाता है।
  • जिन्कगो के पेड़ प्रदूषण के प्रति भी बहुत प्रतिरोधी हैं, और वे बीमारियों और कीड़ों के संक्रमण के प्रति प्रतिरोधक छमता दिखाते हैं।

गनेटोफ़ाइटा

  • इस प्रजाति के केवल तीन प्रजाति जीवित हैं।
  • नीटोफाइट्स में सामान्यतः उष्णकटिबंधीय पौधे, पेड़ और झाड़ियाँ सम्मिलित होती हैं।
  • इनकी विशेषता फूलदार पत्तियां होती हैं जिन पर मुलायम परत होती है।
  • नीटोफाइट्स इस वर्ग के अन्य सदस्यों से भिन्न होते हैं क्योंकि उनके जाइलम में वाहिका तत्व होते हैं।

कोनिफेरोफाइटा

  • इसमें अनावृतबीजी पौधे परिवार की सबसे अधिक ज्ञात प्रजातियाँ हैं।
  • यह सदाबहार पौधे होते हैं अर्थात वे सर्दियों में अपने पत्ते नहीं गिराते।
  • यह वृक्ष सामान्यतः समशीतोष्ण क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहां तापमान ठंढा होता है।

उदाहरण

  • साइकाडोफाइटा - साइकस
  • जिन्कगोफाइटा - गिंकगो बिलोबा
  • गनेटोफ़ाइटा - एफेड्रा और नेटम
  • कोनिफेरोफाइटा - सिकोइया, सेडरस, थूजा (मोरपंखी) और पाइनस (देवदार)

विशेषताएँ

अनावृतबीजी पौधों की महत्वपूर्ण विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

प्राकृतिक वास

  • ये ठंडे क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
  • ये बारहमासी पेड़ होते हैं।
  • कोनिफेरोफाइट्स, समशीतोष्ण और उपनगरीय क्षेत्रों में प्रमुख हैं।
  • साइकैड्स और गनेटोफाइट्स मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय या उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं।

वानस्पतिक अंग

  • जड़ें आम तौर पर मूसला जड़ें होती हैं।
  • तने अशाखित (साइकस) या शाखित (पाइनस, सेड्रस) होते हैं।
  • पत्तियाँ, सरल या मिश्रित होती हैं। जिम्नोस्पर्म की पत्तियाँ चरम स्थितियों, जैसे, तापमान, आर्द्रता और हवा को झेलने के लिए अच्छी तरह से अनुकूलित होती हैं।
  • इन पौधों में सतह क्षेत्र कम करने के लिए सुई जैसी पत्तियाँ विकसित होती हैं।
  • पत्तियों का मोटा क्यूटिकल और धँसा हुआ रंध्र, जल हानि को कम करने में मदद करें।
  • वर्तिकाग्र अनुपस्थित होने के कारण, वे सीधे हवा द्वारा परागित होते हैं।
  • इन पौधों में संवहनी ऊतक होते हैं जो पोषक तत्वों और पानी के परिवहन में मदद करते हैं।
  • जाइलम में वाहिकाएँ नहीं होती हैं और फ्लोएम में कोई साथी कोशिकाएँ और छलनी नलिकाएँ नहीं होती हैं।

प्रजनन अंग

  • वे पुष्प का उत्पादन नहीं करते।
  • बीज फल से ढके नहीं होते। बल्कि वे गैर-आच्छादित स्थिति होते हैं।
  • इन पौधों में जनन संरचनाओं के साथ शंकु बनते हैं।
  • जिम्नोस्पर्म विषमबीजाणु होते हैं; वे अगुणित माइक्रोस्पोर्स और मेगास्पोर्स बनाते हैं।

नर शंकु

  • इनमें लघुबीजाणु पर्ण (माइक्रोस्पोरोफिल) होते हैं जिनमें लघुबीजाणुधानी (माइक्रोस्पोरंगिया) होता है अर्थात लघुबीजाणुधानी जिस पत्र में लगी रहती है, उसे लघुबीजाणु पर्ण कहते हैं।
  • लघुबीजाणुधानी अगुणित लघुबीजाणु का निर्माण करता है। कुछ सूक्ष्मबीजाणु विकसित होकर नर युग्मक बनते हैं जिन्हें पराग कण कहते हैं और शेष नष्ट हो जाते हैं।

मादा शंकु

  • गुरुबीजाणु पर्ण (मेगास्पोरोफिल्स) एकत्रित होकर मादा शंकु बनाते हैं।
  • उनके पास गुरुबीजाणुधानी (मेगास्पोरैंगियम) युक्त बीजांड होते हैं। यह अगुणित गुरुबीजाणु और एक गुरुबीजाणु मातृ कोशिका का निर्माण करता है।

रोचक तथ्य

  • जिम्नोस्पर्मों में से एक, विशाल रेडवुड वृक्ष सिकोइया सबसे ऊंचे वृक्ष प्रजातियों में से एक है। इसे सामान्यतः रेडवुड (एक प्रकार का लम्बा सदाबहार पेड़) के रूप में जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि रेडवुड 115.5 मीटर (379 फीट) लंबा और व्यास 9 मीटर (30 फीट) तक बढ़ सकता है।
  • पाइनस की जड़ों में कवकीय संबंध होता है जिसे, माइकोराइजा कहा जाता है।
  • साइकस की जड़ों में विशिष्ट, कोरलॉइड जड़ें कहलाने वाली जड़ें होती हैं जो साइनोबैक्टीरिया से जुड़ी होती है। वे नाइट्रोजन स्थिरीकरण करते हैं।