थैली (पुटिका)
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स्ट्रोमा में पाए जाने वाले झिल्लीदार चपटे पुटिकाओं को थाइलेकॉइड कहा जाता है ये एक दूसरे पर एकत्र होकर सिक्कों के समान ढेर बनाते हैं जिन्हे ग्रेनम कहते हैं। सायनोबैक्टीरिया तथा अन्य प्रकाश संश्लेषी जीवाणुओं में थायलेक्वाइड उपस्थित होते हैं जो कोशिकाद्रव्य में मुक्त रूप से निलंबित रहते हैं अर्थात वे झिल्ली द्वारा घिरे हुए नहीं होते और उनमें बैक्टीरियोक्लोरोफिल होते हैं। थायलेक्वाइड हरितलवक में उपस्थित मैट्रिक्स में होता है जिसे पट्टिका भी कहते हैं।
थायलेक्वाइड की मुख्य विशेषताएं हैं:
- प्रत्येक थायलेक्वाइड क्लोरोप्लास्ट के स्ट्रोमा में उपस्थित एक झिल्ली-बद्ध थैली है।
- थायलेक्वाइड के ढेर को ग्रैना कहते है, जो सिक्कों के ढेर जैसा दिखता है। वे प्रकाश संश्लेषण की प्रकाश अभिक्रिया का स्थल हैं।
- दो अलग-अलग ग्रैना के थायलेक्वाइड स्ट्रोमा लैमेला द्वारा जुड़े हुए हैं ।
- प्रत्येक थायलेक्वाइड थायलेक्वाइड झिल्ली और थायलेक्वाइड लुमेन से बना होता है।
थायलेक्वाइड झिल्ली
थायलेक्वाइड झिल्ली सबसे भीतरी हिस्से या थायलेक्वाइड लुमेन को घेरती है। क्लोरोप्लास्ट की आंतरिक झिल्ली कभी-कभी थायलेक्वाइड झिल्ली के साथ निरंतर होती है। थायलेक्वाइड झिल्ली फॉस्फोलिपिड्स और गैलेक्टोलिपिड्स से बनी होती है। यह क्लोरोप्लास्ट की आंतरिक झिल्ली के समान है। थायलेक्वाइड झिल्ली में क्लोरोफिल और अन्य प्रकाश संश्लेषक रंगद्रव्य होते हैं।
थायलेक्वाइड का कार्य
प्रकाश संश्लेषण की प्रकाश पर निर्भर अभिक्रियाओं के लिए थायलेक्वाइड एक प्रमुख स्थल हैं। यह जल के ऑक्सीकरण में भी शामिल होता है जिसके परिणामस्वरूप प्रकाश संश्लेषण के दौरान ऑक्सीजन निकलती है।
हरित लवक की संरचना
वर्णी लवक को क्रोमोप्लास्ट के नाम से भी जाना जाता है। यह पौधों के रंगीन भागों में पाया जाता है। हरितलवक (क्लोरोप्लास्ट) भी एक प्रकार का वर्णी लवक है। जोकि पौधों के हरे भागों में पाया जाता है। हरितलवक हरे रंग के लवक (प्लास्टिड) होते हैं, इनमें हरे रंग का पर्णहरिम या क्लोरोफिल होता है जिसके कारण पौधों और पत्तियों के कुछ भाग हरे होते हैं। हरितलवक मुख्य रूप से पत्तियों, कोमल तनों और अपरिपक्व फलों की बाहरी त्वचा में पाए जाते हैं। हरितलवक के द्वारा ही प्रकाश संश्लेषण की क्रिया होती है। हरित लवकों में पर्णहरित वर्णक व केरिटिनॉइड वर्णक मिलते हैं जो प्रकाश- संश्लेषण के लिए आवश्यक प्रकाशीय ऊर्जा को संचित रखने का कार्य करते हैं। हरे पौधों में अधिकतर हरितलवक पत्ती की पर्णमध्योत्तक कोशिकाओं में पाए जाते हैं।
प्रत्येक हरित लवक अर्ध पारगम्य, दोहरी झिल्ली का बना होता है। यह प्लाज्मा झिल्ली की तरह लिपोप्रोटीन की बनी होती है। इसमें दो प्रकार की झिल्ली होती है
- बाहरी झिल्ली
- आंतरिक झिल्ली
इसके अंदर प्रोटीन से भरा एक पारदर्शी पदार्थ भरा होता है, जिसे मैट्रिक्स कहा जाता है। हरितलवक के अन्तः झिल्ली से घिरे हुए भीतर के स्थान को पीठिका(स्ट्रोमा) कहते हैं। स्ट्रोमा में कई एंजाइम, राइबोसोम, स्टार्च और डीएनए पाए जाते हैं, स्ट्रोमा में पाए जाने वाले झिल्लीदार चपटे पुटिकाओं को थाइलेकॉइड कहा जाता है ये एक दूसरे पर एकत्र होकर सिक्कों के समान ढेर बनाते हैं जिन्हे ग्रेनम कहते हैं। हरितलवक में ग्रेनम की संख्या 40 से 100 तक हो सकती है। प्रत्येक ग्रैना एक स्ट्रोमा लैमेला द्वारा एक दूसरे से जुड़ा होता है। ग्रेनम के दोनों तरफ प्रोटीन का मोटा स्तर होता है, प्रत्येक थाइलेकॉइड के बीच में पर्णहरिम अथवा क्लोरोफिल होता है। पर्णहरिम या क्लोरोफिल की परतें सूर्य के प्रकाश को अवशोषित करके भोजन निर्माण में सहायता करती हैं।
पार्क एवं पॉन के अनुसार थाइलेकॉएड का निर्माण करने वाली झिल्लियों की भीतरी सतह पर 200 एंग्स्ट्रॉम लम्बे व 100 एंग्स्ट्रॉम चौड़े अनेक सूक्ष्म दाने पाए जाते हैं, ये क्वांटासोम कहलाते हैं। प्रत्येक क्वांटासोम में क्लोरोफिल के 230 अणु होते हैं। ये ही प्रकाश संश्लेषण के लिए सक्रिय स्थल है।
अभ्यास प्रश्न
- थायलेक्वाइड क्या हैं?
- थायलेक्वाइड का कार्य क्या है?