नाभिकरागी प्रतिस्थापन
इस प्रकार की अभिक्रिया में नाभिकरागी हैलोएल्केन से अभिक्रिया करता है जिसमे हैलोजन परमाणु से आबन्धित परमाणु पर धनावेश होता है, प्रतिस्थापन अभिक्रिया होती है तथा हैलाइड आयन बाहर निकल जाता है जिसे अवशिष्ट समूह कहते हैं। चूंकि प्रतिस्थापन अभिक्रिया नाभिकरागी के द्वारा प्रारम्भ होती है अतः इसे नाभिकरागी प्रतिस्थापन अभिक्रिया कहते हैं।
नाभिकरागी प्रतिस्थापन अभिक्रियाएं दो प्रकार की होती हैं:
- एकाण्विक नाभिकरागी प्रतिस्थापन
- द्विआण्विक नाभिकरागी प्रतिस्थापन
एकाण्विक नाभिकरागी प्रतिस्थापन
SN1 अभिक्रियाएं सामान्यतः ध्रुवीय प्रोटिक विलायकों में संपन्न होती हैं ये ध्रुवीय प्रोटिक विलायक हैं। एल्कोहॉल, एसीटिक अम्ल, जल आदि। तृतीयक ब्यूटिल ब्रोमाइड की हाइड्रॉक्साइड आयन से अभिक्रिया कराने पर तृतीयक ब्यूटिल ऐल्कोहॉल प्राप्त होता है। इसमें अभिक्रिया का वेग केवल एक अभिकारक की सांद्रता पर निर्भर करता है। इसलिए इस अभिक्रिया की कोटि भी एक होती है। यही कारण है कि इसे SN1 अभिक्रिया भी कहते हैं।
यह अभिक्रिया दो चरणों में संपन्न होती है।
प्रथम चरण
प्रथम चरण सबसे धीमा तथा उत्क्रमणीय होता है जिसमें C - Br आबंध का विदलन होता है जिसके लिए ऊर्जा प्रोटिक विलायकों के प्रोटॉन द्वारा हैलाइड आयन के विलायक योजन से प्राप्त होती है। कार्बधात्विक यौगिक का स्थायित्व जितना अधिक होगा एल्किल हैलाइड से उनका विरचन उतना ही अधिक आसान होगा तथा अभिक्रिया का वेग उतना ही अधिक होगा। 3o एल्किल हैलाइड तीव्रता से अभिक्रिया देते हैं क्योकीं 3० कार्बधात्विक यौगिक का स्थायित्व बहुत अधिक होता है।
3o > 2o > 1o
कार्बधात्विक यौगिक का स्थायित्व का क्रम
प्रथम चरण में ध्रुवीय C - Br आबंध के विदलन से एक कार्बधात्विक आयन और एक ब्रोमाइड आयन बनता है।
द्वितीयक चरण
द्वितीयक चरण में कार्बधात्विक यौगिक पर एक नाभिकरागी का आक्रमण होता है तथा प्रतिस्थापन अभिक्रिया पूर्ण होती है।
द्विआण्विक नाभिकरागी प्रतिस्थापन
CH3Cl और हाइड्रॉक्साइड आयन की अभिक्रिया, जिसमें मेथेनॉल तथा क्लोराइड आयन बनता है यह एक द्वितीयक कोटि की अभिक्रिया है। अर्थात, अभिक्रिया का वेग दोनों अभिकारकों की सांद्रता पर निर्भर करता है। इस अभिक्रिया को आरेखीय रूप में भी प्रदर्शित किया जा सकता है।
- प्रतिस्थापन न्यूक्लियोफिलिक बिमोलेक्यूलर (SN2) अभिक्रिया एक प्रकार की कार्बनिक रासायनिक अभिक्रिया है जहां एक न्यूक्लियोफाइल (इलेक्ट्रॉन-समृद्ध प्रजाति) एक अणु में एक वाले समूह को प्रतिस्थापित करती है, जिससे एक नए रासायनिक बंध का निर्माण होता है। "द्विआणविक" पहलू इस तथ्य को संदर्भित करता है कि अभिक्रिया के दर-निर्धारण चरण में दो अणुओं का टकराव सम्मिलित है।
- SN2 अभिक्रियाएं स्टीरियोस्पेसिफिक होती हैं, जिसका अर्थ है कि वे प्रतिस्थापन के दौर से गुजर रहे कार्बन केंद्र में स्टीरियोकैमिस्ट्री के व्युत्क्रम के साथ आगे बढ़ती हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि न्यूक्लियोफाइल छोड़ने वाले समूह के विपरीत पक्ष से हमला करता है, जिससे कॉन्फ़िगरेशन का सीधा उलटा होता है।
- न्यूक्लियोफाइल इलेक्ट्रोफिलिक कार्बन परमाणु पर उस समय हमला करता है जब निकलने वाला समूह प्रस्थान करता है। इसका परिणाम एक संक्रमण अवस्था में होता है जहां न्यूक्लियोफाइल और छोड़ने वाला समूह दोनों आंशिक रूप से केंद्रीय कार्बन परमाणु से बंधे होते हैं।
अभिक्रिया दर
SN2 अभिक्रियाओं की दर न्यूक्लियोफाइल और सब्सट्रेट दोनों की सांद्रता पर निर्भर करती है, साथ ही अभिक्रियाशील कार्बन परमाणु के आसपास स्टेरिक बाधा पर भी निर्भर करती है। सामान्यतः SN2 अभिक्रिया धीमी गति से गुजरते हैं।
द्विअणुक नाभिकरागी प्रतिस्थापन को प्रदर्शित करता है। आक्रमणकारी नाभिकरागी की एल्किल हैलाइड से अन्योन्य क्रिया होने पर कार्बन और हैलोजन के मध्य का बंध टूटता है तथा कार्बन एवं आक्रमणकारी नाभिकरागी के मध्य एक नया आबंध बनता है। ये दोनों प्रक्रियाएं एक साथ एक ही पद में संपन्न होती हैं तथा कोई मध्यवर्ती नहीं बनता। जब अभिक्रिया प्रगति है तब आने वाले नाभिकरागी एवं कार्बन परमाणु के मध्य आबंध बनना प्रारम्भ हो जाता है। फिर क्रियाधार के कार्बन हाइड्रोजन बंध आक्रमणकारी नाभिकरागी से लगते हैं जब नाभिकरागी कार्बन के समीप पहुँचता है तब बंध पहले की दिशा में अग्रसर होते रहते हैं जब तक टूटने वाला समूह कार्बन से टूटकर अलग नहीं हो जाता परिणामस्वरूप आक्रमण के लिए उपलब्ध कार्बन परमाणु का विन्यास पलट जाता है और अवशिष्ट समूह बाहर निकल जाता है। इस प्रक्रिया को विन्यास का प्रतीपन कहते हैं
अभ्यास प्रश्न
- एकाण्विक नाभिकरागी प्रतिस्थापन अभिक्रिया से आप क्या समझते हैं ?
- नाभिकरागी प्रतिस्थापन अभिक्रिया क्या है ?
- द्विआण्विक नाभिकरागी प्रतिस्थापन अभिक्रिया से आप समझते हैं ?
- एकाण्विक नाभिकरागी प्रतिस्थापन अभिक्रिया से आप समझते हैं ?