पाटीगणितम् में 'घन'
यहां हम सीखेंगे कि पाटीगणितम् के अनुसार किसी संख्या का 'घन' कैसे ज्ञात किया जाता है।
श्लोक
स्थाप्योऽन्त्यघनोऽन्त्यकृतिः स्थानाधिक्यं त्रिपूर्वगुणिता च ।
आद्यकृतिरन्त्यगुणिता त्रिगुणा च घनस्तथाऽऽद्यस्य ॥ २७ ॥
निर्युक्तराशिरन्त्यं (तस्य) घनोऽसौ समत्रिराशिहतिः ।
एकादिचये वाऽन्त्ये त्र्यादिहते पूर्वघनयुतिः सैके ॥ २८ ॥
अनुवाद
[मान लें कि दी गई संख्या के अंतिम अंक को 'अंतिम' (अंत्य) कहा जाता है और अंतिम-लेकिन-एक अंक को 'प्रथम' (आदि) या 'पूर्ववर्ती' (पूर्व) कहा जाता है।][1]
'अंतिम' का घन नीचे निर्धारित करें; फिर (क्रमशः) एक स्थान आगे (स्थानाधिक्यम्) निर्धारित करें, (i) 'अंतिम' के वर्ग को 'पूर्ववर्ती' से तीन गुना गुणा किया जाए, (ii) 'प्रथम' के वर्ग को 'अंतिम' से गुणा किया जाए साथ ही 3 से भी किया जाए, और (iii) 'प्रथम' का घन। यह संयुक्त संख्या का घन देता है ('अंतिम' और 'प्रथम' द्वारा गठित) (निर्युक्त-राशि), जिसे अब 'अंतिम' माना जाना चाहिए (बशर्ते दी गई संख्या में दो से अधिक अंक हों) .
तीन समान मात्राओं का (जारी) गुणनफल; या, श्रृंखला में प्रथमपद के लिए 1 और सार्व अंतर (अंतिम दो पदों पर विचार करते हुए, उन्हें क्रमशः 'प्रथम' या 'पूर्ववर्ती' और 'अंतिम' के रूप में निर्दिष्ट करते हुए), अंतिम को गुणा किया जाता है। 'प्रथम' को तीन गुना करके, और 1 से बढ़ाकर, और जो 'पूर्ववर्ती' के घन में जोड़ा जाता है, वह भी घन होता है।
यहां बताए गए तीन नियमों में से, प्रथम नियम किसी संख्या को घनित करने की मुख्य विधि है, इसे उदाहरण से समझाने के लिए, आइए निम्न रूप से जाननें का प्रयत्न करते हैं
256 का घन.
उदाहरण: 256 का घन
आरंभ करने के लिए हम 25 का घन ज्ञात करते हैं, जिसमें 2 'अंतिम' और 5 'प्रथम' है।
अंतिम | प्रथम |
---|---|
2 | 5 |
अंतिम का घन (23) | 8 | |||
'अंतिम' के वर्ग को 'प्रथम' के तीन गुना से गुणा किया जाता है। (3 x 5 x 22 = 60)
को अगले स्थान पर इस प्रकार रखा जाए कि, 8 के एक स्थान बगल में 0 हो |
6 | 0 | ||
'प्रथम' के वर्ग को 'अंतिम' के तीन गुना से गुणा किया जाता है। (3 x 2 x 52 = 150)
अगले स्थान पर रखा जाएगा इस प्रकार कि,0 के एक स्थान बगल में 0 हो |
1 | 5 | 0 | |
प्रथम(53=125) के घन को अगले स्थान पर इस प्रकार रखा जाना है कि, 5 के एक स्थान बगल में 0 हो | 1 | 2 | 5 | |
प्रत्येक स्तम्भ का योग = 25 का घन = | 15 | 6 | 2 | 5 |
अब हम 256 का घन ज्ञात करते हैं, जिसमें 25 'अंतिम' और 6 'प्रथम' है।
अंतिम | प्रथम |
---|---|
25 | 6 |
अंतिम का घन (253) | 1 | 5 | 6 | 2 | 5 | |||
'अंतिम' के वर्ग को 'प्रथम' के तीन गुना से गुणा किया जाता है। (3 x 6 x 252 = 11250)
को अगले स्थान पर इस प्रकार रखा जाए कि, 5 के एक स्थान बगल में 0 हो |
1 | 1 | 2 | 5 | 0 | |||
'प्रथम' के वर्ग को 'अंतिम' के तीन गुना से गुणा किया जाता है। (3 x 25 x 62 = 2700)
अगले स्थान पर रखा जाएगा इस प्रकार कि, 0 के एक स्थान बगल में 0 हो |
2 | 7 | 0 | 0 | ||||
प्रथम(63=125) के घन को अगले स्थान पर इस प्रकार रखा जाना है कि, 0 के एक स्थान बगल में 6 हो | 2 | 1 | 6 | |||||
प्रत्येक स्तम्भ का योग = 256 का घन = | 1 | 6 | 7 | 7 | 7 | 2 | 1 | 6 |
256 का घन = 16777216
यह भी देखें
संदर्भ
- ↑ (शुक्ला, कृपा शंकर (1959)। श्रीधराचार्य की पाटीगणित। लखनऊ: लखनऊ विश्वविद्यालय. पृष्ठ-11-12।)"Shukla, Kripa Shankar (1959). The Pāṭīgaṇita of Śrīdharācārya. Lucknow: Lucknow University. p.11-12.