भास्कर द्वितीय

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भास्कर द्वितीय , जिन्हें भास्कर या भास्कराचार्य के नाम से भी जाना जाता है , वीं सदी के भारतीय गणितज्ञ थे। वह एक प्रसिद्ध खगोलशास्त्री भी थे । उनके मुख्य कार्य, सिद्धांत शिरोमणि के छंदों के अनुसार , उनका जन्म में वर्तमान महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट क्षेत्र में पाटन शहर के पास , सह्याद्रि पर्वत श्रृंखला में विज्जलविडा में हुआ था। वह एकमात्र प्राचीन गणितज्ञ हैं , जिनके लिए एक स्मारक समर्पित है । उन्होंने न्यूटन जैसे यूरोपीय गणितज्ञ से सदियों पहले कैलकुलस के सिद्धांतों और खगोलीय समस्याओं और गणनाओं में इसके अनुप्रयोग की महत्वपूर्ण खोज की थी । भास्कर द्वितीय प्राचीन भारत के मुख्य गणितीय केंद्र, उज्जैन में एक ब्रह्मांड वेधशाला का नेतृत्व करते थे। भास्कर और उनके कार्यों ने वीं सदी के गणितीय और खगोलीय ज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्हें मध्यकालीन भारत का सबसे महान गणितज्ञ बताया गया है ।

महत्वपूर्ण योगदान

  1. उनका मुख्य कार्य, सिद्धांत-शिरोमणि चार भागों में विभाजित है , जिन्हें लीलावती , बीजगणित , ग्रहगणिता और गोलाध्याय के नाम से जाना जाता है , उन्होंने "कारण कौतुहल" नामक ग्रंथ भी लिखा ।
  2. पहला खंड , लीलावती का नाम उनकी बेटी के नाम पर रखा गया है और इसमें छंद हैं। इसमें गणना , माप , क्रमपरिवर्तन और अन्य विषय सम्मिलित हैं ।
  3. दूसरे खंड बीजगणित में छंद हैं। इसमें शून्य, अनंत, धनात्मक और ऋणात्मक संख्याएँ और समीकरण सम्मिलित हैं ।[1]
  4. ग्रहगणिता के तीसरे खंड में ग्रहों की गति की चर्चा करते हुए उन्होंने उनकी तात्कालिक गति पर विचार किया हैं ।
  5. 7वीं शताब्दी में ब्रह्मगुप्त द्वारा विकसित एक खगोलीय मॉडल का उपयोग करते हुए, भास्कर द्वितीय ने कई खगोलीय मात्राओं को सटीक रूप से परिभाषित किया , जैसे कि नक्षत्र वर्ष की लंबाई , पृथ्वी को सूर्य की परिक्रमा करने के लिए आवश्यक समय , दिन , जो सूर्यसिद्धांत के समान है। आधुनिक स्वीकृत माप दिन है , जो मिनट कम है ।

गणित में योगदान

  1. भास्कर द्वितीय त्रिकोणमिति के अपने व्यापक ज्ञान के लिए प्रसिद्ध थे । [2]उनके कार्यों में की गई पहली खोजों में और के कोणों की ज्या की गणना थी।
  2. उन्हे गोलाकार त्रिकोणमिति की खोज का श्रेय दिया जाता है , जो खगोल विज्ञान , भूगणित में उपयोग की जाने वाली गोलाकार ज्यामिति की एक शाखा है ।
  3. शून्य से विभाजन के अर्थ को स्पष्ट करने वाले वे पहले व्यक्ति थे , क्योंकि उन्होंने विशेष रूप से कहा था कि का मान है ।[3]
  4. उन्होने अज्ञात संख्याओ को दर्शाने के लिए अक्षरों का उपयोग किया, जैसा कि आधुनिक बीजगणित में होता है ।
  5. भास्कर द्वितीय द्वारा संकलित लीलावती में द्विघात , घन और चतुर्थक अनिश्चित समीकरणों को हल करने की विधि उल्लेखित है।
  6. उन्होने द्विघात समीकरणों को भी हल करने की विधि बताई है ।
  7. भास्कर द्वितीय का अंकगणितीय पाठ लीलावती परिभाषाओं , अंकगणितीय शब्दों , ब्याज गणना , समांतर और गुणोत्तर श्रेढ़ीयों , समतल ज्यामिति, ठोस ज्यामिति , अनिश्चित समीकरणों को हल करने के तरीकों और संयोजनों के विषयों को सम्मिलित करता है ।
  8. सिद्धांत शिरोमणि भास्कर के त्रिकोणमिति के ज्ञान को प्रदर्शित करता है , जिसमें ज्या तालिका और विभिन्न त्रिकोणमितीय घटको के बीच संबंध शामिल हैं।

सम्मान

  1. भारत में कई संस्थानों और महाविद्यालयों का नाम उनके नाम पर रखा गया है , जिनमें पुणे में भास्कराचार्य प्रतिष्ठान , दिल्ली में भास्कराचार्य कॉलेज ऑफ एप्लाइड साइंसेज, गांधीनगर में भास्कराचार्य इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस एप्लिकेशन और जियो-इंफॉर्मेटिक्स शामिल हैं ।
  2. नवंबर को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने गणितज्ञ और खगोलशास्त्री को सम्मानित करते हुए भास्कर द्वितीय उपग्रह प्रक्षेपण(लॉन्च) किया ।
  3. इनविस मल्टीमीडिया ने में उनके सम्मान में एक भारतीय वृत्तचित्र भास्कराचार्य भी जारी किया था।

संदर्भ

  1. "महत्वपूर्ण योगदान".
  2. "गणित में योगदान".
  3. "गणित में योगदान".