धातुओं का शोधन
किसी विधि द्वारा निष्कर्षण से प्राप्त धातुओं में कुछ अशुद्धियाँ मिली रहती हैं। शुद्ध धातु प्राप्त करने के लिए अनेक विधियों का प्रयोग किया जाता है जो निम्न लिखित हैं:
- आसवन
- द्रावगलन परिष्करण
- विद्युत अपघटनी परिष्करण की विधि का सिद्धांत
- मंडल परिष्करण
- वर्णलेखिकी
आसवन
जब कोई मिश्रण ऐसे पदार्थों से मिलकर बना होता है जिनके कथ्नांकों में अधिक अंतर् होता है तो ऐसे पदार्थों को पृथक करने के लिए साधारण आसवन विधि को प्रयोग में लाया जाता है। लेकिन मान लीजिये कोई अन्य मिश्रण ऐसे पदार्थों बना है जिनके पदार्थों के कथ्नांक में अधिक अंतर् नहीं पाया जाता है ऐसी स्थित में पदार्थों को साधारण आसवन विधि द्वारा पृथक नही किया जा सकता है, ऐसे पदार्थों को अलग अलग करने के लिए प्रभाजी आसवन विधि को काम में लाया जटगा है। आसवन (Distillation) किसी मिश्रित द्रव के अवयवों को उनके वाष्पन-सक्रियताओं (volatilities) के अन्तर के आधार पर उन्हें अलग करने की विधि है। यह पृथक्करण की भौतिक विधि है न कि रासायनिक परिवर्तन अथवा रासायनिक अभिक्रिया।
द्रावगलन परिष्करण
इस विधि में कम गलनांक वाली धातु जैसे टिन को पिघलाकर ढालू सतह पर बहने दिया जाता है, जिससे अधिक गलनांक वाली अशुद्धियाँ अलग हो जाती हैं।
विद्युत अपघटनी परिष्करण की विधि का सिद्धांत
विभन्न अपचयन प्रक्रमों से प्राप्त धातुएं पूर्ण रूप से शुद्ध नही होती हैं। इनमे अनेक अशुद्धियाँ होती हैं जिन्हे हटाकर हम शुद्ध धातु प्राप्त कर सकते हैं। अशुद्ध धातु से शुद्ध धातु प्राप्त करने क लिए विधुत अपघटनी विधि का प्रयोग किया जाता है। इस प्रक्रिया में, अशुद्ध धातु के बने हुए एनोड होते हैं, और कैथोड शुद्ध धातु की एक पट्टी से बना होता है। जिस धातु को शुद्ध करना है उस धातु को वैधुत अपघट्य पदार्थ की तरह प्रयोग किया जाता है। इस को चित्र के अनुसार व्यवस्थित कर लेते हैं फिर इसमें विधुत धारा प्रवाहित करते हैं विधुत धारा प्रवाहित करने पर वैधुत अपघट्य पदार्थ में उपस्थित अशुद्धियाँ कैथोड पर जाने लगती हैं धीरे धीरे अशुद्ध एनोड पिघल पिघल कर विलयन में आता जायेगा विलेय अशुद्धियाँ विलयन में चली जाती हैं तथा अविलेय अशुद्धियाँ एनोड तली पर निक्षेपित हो जाती हैं जिसे एनोड पंक कहते हैं। और विलयन से शुद्ध होकर कैथोड पर जाता जाएगा यह प्रक्रिया कुछ देर तक चलेगी थोड़ी देर बाद हम देखेंगे की अशुद्ध धातु के एनोड पतले होते जायेंगे और शुद्ध धातु के कैथोड मोटे होते चले जायेंगे। इस प्रक्रार प्राप्त शुद्ध कैथोड को विलयन से बाहर निकाल लेंगे। और हमको 99.9 % तक शुद्ध धातु कैथोड से प्राप्त हो जाएगी।
उदाहरण
अशुद्ध ज़िंक को विद्युत अपघटनी परिष्करण की विधि द्वारा निम्न प्रकार से शुद्ध किया जा सकता है:
अशुद्ध ज़िंक को शुद्ध करने के लिए हम अशुद ज़िंक के मोटे मोटे एनोड बनाते हैं और शुद्ध धातु के पतले कैथोड बनाते हैं। अम्लीय ZnSO4 का उपयोग वैधुत अपघट्य के रूप में किया जाता है। जब विधुत धारा वैधुत अपघट्य पदार्थ से होकर गुजरती है, तो एनोड से शुद्ध जिंक घुल जाता है और कैथोड पर जमा हो जाता है। घुलनशील अशुद्धियाँ विलयन में चली जाती हैं, जबकि अघुलनशील अशुद्धियाँ एनोड मड के रूप में नीचे बैठ जाती हैं।
कैथोड पर होने वाली अभिक्रिया:
एनोड पर होने वाली अभिक्रिया:
मंडल परिष्करण
यह विधि इस सिद्धान्त पर आधारित है कि अशुद्धियों की विलेयता धातु की ठोस अवस्था की अपेक्षा गलित अवस्था में अधिक होती है। अशुद्ध धातु की छड़ के एक किनारे पर एक वृत्ताकार गतिशील तापक लगा रहता है। इसकी सहायता से अशुद्ध धातु को गर्म किया जाता है। तापक जैसे ही आगे की औऱ बढ़ता है गलित से शुद्ध धातु क्रिस्टलीकृत हो जाती है और अशुद्धियाँ गलित मंडल में चली जाती हैं। इस प्रक्रिया को कई बार दोहराया जाता है।
वर्णलेखिकी
अधिशोषण वर्णलेखन सिद्धान्त के अनुसार किसी विशिष्ट अधिशोषक पर विभिन्न यौगिकों के अधिशोषण की मात्रा भिन्न-भिन्न होती है। जिसमे सिलिका जेल और ऐलुमिना सामान्यतः अधिशोषक के रूप में प्रयुक्त किए जाते हैं। स्थिर प्रावस्था (अधिशोषक) पर गतिशील प्रावस्था को प्रवाहित करने से मिश्रण के अवयव स्थिर प्रावस्था पर भिन्न-भिन्न दूरी तय करते हैं। किसी विशिष्ट अधिशोषक पर विभन्न यौगिक भिन्न अंशों में अधिशोषित होते हैं।
वर्णलेखन विधियों के प्रकार
निम्नलिखित वर्णलेखन विधियाँ विभेदी-अधिशोषण सिद्धान्त पर आधारित हैं:
(i) कॉलम-वर्णलेखन, अर्थात् स्तम्भ-वर्णलेखन
(ii) पतली परत वर्णलेखन।
कॉलम-वर्णलेखन, अर्थात् स्तम्भ-वर्णलेखन
कॉलम क्रोमैटोग्राफी एक अत्यधिक प्रारंभिक तकनीक है जिसका उपयोग यौगिकों को शुद्ध करने के लिए किया जाता है। कॉलम क्रोमैटोग्राफी को उनकी ध्रुवता के आधार पर शुद्ध करने के लिए किया जाता है। इस विधि में अणुओं के मिश्रण को एक मोबाइल चरण और एक स्थिर चरण के बीच उनके अंतर विभाजन के आधार पर अलग किया जाता है। जिसमे एक पाश्चर पिपेट का उपयोग स्तंभ के रूप में किया जाता है और सामान्यतः मिश्रण को अलग करने के लिए 1 ग्राम अधिशोषक (अर्थात सिलिका/एल्यूमिना) का उपयोग किया जाता है।
निम्नलिखित में से किसका उपयोग अधिशोषण क्रोमैटोग्राफी में अधिशोषक के रूप में नहीं किया जा सकता है?
- इस विधि में एक पाश्चर पिपेट और ~1 ग्राम सिलिका या एल्यूमिना ऑक्साइड लेते हैं।
- फिर पाश्चर पिपेट को इस प्रकार व्यवस्थित करतें हैं कि यह सीधा हो और इसे क्लैंप से सुरक्षित करें।
- अन्य पाश्चर पिपेट या तार का उपयोग करके पिपेट के आधार में थोड़ी मात्रा में कांच का ऊन डाला जाना चाहिए। यह किसी भी सूक्ष्म कण को अंदर जाने से रोकने के लिए किया जाता है।
- उसके उपरांत सिलिका को छोटे कीप के माध्यम से पिपेट में जोड़ा जाता है।
- इसमें सिलिका का शीर्ष समतल होना चाहिए। यदि सिलिका समतल नहीं है, तो पिपेट को किसी वस्तु पर धीरे से थपथपाएं कि यह समतल हो जाए (इस तकनीक को ड्राई लोडिंग कहते है)।
- प्रवाह दर को नियंत्रित करने के लिए स्टॉपकॉक बनाने के लिए आप एक छोटे क्लैंप वाले कॉलम का उपयोग कर सकते हैं।
नमूना लोड करने में सहायता के लिए स्तंभ के शीर्ष पर (लगभग 2 मिमी ऊंची) थोड़ी मात्रा में रेत डाली जा सकती है (यह नमूना को स्तंभ के माध्यम से आसानी से जाने में मदद करेगा)। इस मामले में शीर्ष पर रेत की परत भी समतल होनी चाहिए। इसमें प्रयोग किये गए विलायक का उपयोग कॉलम को गीला करने के लिए किया जाता है। यह कॉलम (गीली लोडिंग) को कॉम्पैक्ट करने में मदद करता है। प्रयोग समाप्त होने तक इसकी सतह को गीला रखना चाहिए।
पतली परत वर्णलेखन
पतली परत क्रोमैटोग्राफी एक अन्य प्रकार की अधिशेषण क्रोमैटोग्राफी है। इस विधि में कांच की प्लेट पर लेपित अधिशोषक की पतली परत के ऊपर कई पदार्थों के मिश्रण का पृथक्करण किया जाता है। मिश्रण के प्रत्येक घटक के सापेक्षिक अधिशोषण को उसके मंदता कारक (Rf) (प्रतिधारण कारक) के रूप में व्यक्त किया जाता है।
- कांच की प्लेटों को सिलिका जेल (SiO2) की एक समान परत से लेपित किया जाता है।
- इस विधि में घुले हुए नमूने को प्लेट पर रखा जाता है, और उस प्लेट को एक स्क्रू-टॉप जार में रख दिया जाता है इसमें विलायक और फिल्टर पेपर का एक टुकड़ा रखा होता है।
- जब विलायक प्लेट के शीर्ष के करीब पहुंचता है, तो प्लेट को हटा दिया जाता है, उसके बाद प्लेट को सुखाया जाता है और यूवी प्रकाश का उपयोग करके देखा जाता है।
- इस प्रोटोकॉल पर विविधताओं का उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जाता है, जिसमें नमूने का पूर्व-उपचार करना, सॉर्बेंट, प्लेट सामग्री, विलायक प्रणाली, विकास तकनीक, और पता लगाने और विज़ुअलाइज़ेशन की विधि को सम्मिलित है।
उपयोग
पतली परत वर्णलेखन का उपयोग कई उद्योगों और अनुसंधान के क्षेत्रों द्वारा किया जाता है, जिसमें फार्मास्युटिकल उत्पादन, नैदानिक विश्लेषण, औद्योगिक रसायन विज्ञान, पर्यावरण विष विज्ञान, खाद्य रसायन विज्ञान, जल, अकार्बनिक और कीटनाशक विश्लेषण, डाई शुद्धता, सौंदर्य प्रसाधन, पौधे सामग्री और हर्बल विश्लेषण सम्मिलित हैं।
अभ्यास प्रश्न
- एनोड पंक से आप क्या समझते हैं?
- अयस्क से धातु के निष्कर्षण के चरण बताइये।
- विद्युत अपघटनी परिष्करण की विधि में एनोड और कैथोड की मुख्य भूमिका बताइये।
- कॉपर सल्फेट से कॉपर प्राप्त करने में विद्युत अपघटनी परिष्करण की विधि किस प्रकार लागू होगी ?
- वर्णलेखन विधियों के प्रकार बताइये।