पार्श्वक्रम में संयोजित प्रतिरोधक

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Resistors in Parallel

जिस पथ से होकर विद्युत-धारा का प्रवाह होता है, उसे विद्युत-परिपथ (electric circuit) कहते हैं। विद्युत धारा, आवेश के प्रवाह की दर को कहते हैं। इसका मात्रक एम्पीयर होता है। एक कूलॉम प्रति सेकंड की दर से प्रवाहित विद्युत आवेश को एक एम्पीयर धारा कहते हैं। विद्युत परिपथ, वह पथ होता है जिससे होकर विद्युत धारा का प्रवाह होता है।

  • विद्युत धारा, तारों और घटकों के ज़रिए बहने वाले इलेक्ट्रॉनों का प्रवाह है।
  • विद्युत धारा प्रवाहित होने के लिए, परिपथ पूरा होना ज़रूरी है।
  • विद्युत धारा को एम्पीरेज भी कहा जाता है. इसे एमीटर नाम के उपकरण से मापा जाता है।

विद्युत धारा के कुछ प्रभाव

  • विद्युत धारा के कारण चुंबकीय क्षेत्र बनता है। इसका इस्तेमाल मोटर, जनरेटर, प्रेरक, और ट्रांसफ़ॉर्मर में किया जाता है।
  • साधारण कंडक्टरों में विद्युत धारा से जूल हीटिंग होती है जिससे तापदीप्त प्रकाश बल्ब में रोशनी होती है।
  • समय-भिन्न धाराएं विद्युत चुंबकीय तरंगें उत्सर्जित करती हैं। इन तरंगों का इस्तेमाल दूरसंचार में सूचना भेजने के लिए किया जाता है।

विद्युत परिपथ के प्रकार

विद्युत परिपथ के दो मुख्य प्रकार होते हैंः

  • श्रेणी परिपथ
  • समानांतर परिपथ

समानांतर परिपथ

समानांतर परिपथ में, विद्युत परिपथ के विभिन्न भाग कई अलग-अलग शाखाओं पर होते हैं। इलेक्ट्रॉन कई अलग-अलग रास्तों से प्रवाहित हो सकते हैं। यदि परिपथ की एक शाखा में अवसर है तो इलेक्ट्रॉन अभी भी अन्य शाखाओं में प्रवाहित हो सकते हैं (नीचे समानांतर परिपथ की छवि देखें)। आपका घर समानांतर परिपथ के दौरान वायर्ड होता है, इसलिए यदि एक लाइट बल्ब बुझ जाता है तो दूसरा बल्ब जलता रहेगा। समान्तर क्रम में जुड़े दो या अधिक 'दो सिरों वाले' विद्युत अवयवों में सभी के सिरों के बीच विभवान्तर समान होता है किन्तु इनमें से होकर बहने वाली धारा अलग-अलग हो सकती है जो उन अवयवों के प्रतिरोध, प्रेरकत्व, धारिता एवं अन्य बातों पर निर्भर करती है। घरों में लगे हुए बिजली के बल्ब, पंखे, ट्यूबलाइट आदि सभी समान्तरक्रम में जुड़े होते हैं।

प्रतिरोधों में

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विद्युत धारा के प्रकार

विद्युत धारा निम्नलिखित दो प्रकार की होती है:

1. प्रत्यक्ष धारा या DC - डीसी का परिमाण और दिशा निश्चित होती है। यहाँ इलेक्ट्रॉन एक ही दिशा में निरंतर गति से प्रवाहित होते हैं।

2. प्रत्यावर्ती धारा या AC - AC का परिमाण और दिशा समय के साथ बदलती रहती है। यहाँ इलेक्ट्रॉन अलग-अलग गति से इधर-उधर प्रवाहित होते हैं।

श्रेणी परिपथ

श्रेणी परिपथ में इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह के लिए सिर्फ़ एक ही रास्ता होता है (नीचे श्रेणी परिपथ की छवि देखें)। इस परिपथ का मुख्य नुकसान यह है कि अगर परिपथ में कोई क्षति होती है तो पूरा परिपथ खुला रहता है और कोई करंट प्रवाहित नहीं होगा। श्रेणी का एक उदाहरण कई सस्ते क्रिसमस पेड़ों पर लगी लाइटें होंगी। अगर एक लाइट बुझ जाती है तो सभी लाइटें बुझ जाएंगी।

श्रेणी परिपथ

जब किसी विद्युत परिपथ में प्रतिरोधकों को एक के बाद एक लगातार जोड़ा जाता है, तो इसे श्रेणीक्रम संयोजन कहते हैं। यदि किसी विधुत परिपथ में R1,R2 तथा R3 प्रतिरोध के तीन प्रतिरोधकों को जब एक सिरे से दुसरे सिरे को मिलाकर जोड़ा गया हो तो इस संयोजन को श्रेणीक्रम संयोजन कहते है।

  • श्रेणीक्रम में जुड़े प्रतिरोधकों का तुल्य प्रतिरोध, उन सभी प्रतिरोधों के योग के बराबर होता है। यानी, श्रेणीक्रम में लगे प्रतिरोध का तुल्य प्रतिरोध R=R1+R2+R3 होता है।
  • श्रेणीक्रम में जुड़े सभी प्रतिरोधकों में एक ही धारा प्रवाहित होती है।
  • श्रेणीक्रम में जुड़े सभी प्रतिरोधकों में कुल वोल्टेज, प्रत्येक प्रतिरोधक में वोल्टेज के योग के बराबर होता है।
  • श्रेणीक्रम में जुड़े प्रतिरोधकों के अलग-अलग घटकों के सिरों के बीच का विभवान्तर, उन घटकों के विद्युतीय गुणों पर निर्भर करता है।